बूढा कल 

ज़िन्दगी हांफती हुई 
आज उस  पेड़ के नीचे बैठी दिखी । 
जब मैंने उसे  झुककर देखा तो 
वो मेरा बूढा कल था।  
उसपर उबड़ खाबड़ रास्तों की कई झुर्रियां है
लेकिन माथा सपाट है। 
दरअसल, थककर चूर
 दिन रात पसीना पोछते पोछते 
वो उबड़ खाबड़ रास्ते  सपाट  हो गए हैं। 
और मेरा बूढा कल 
उसी पेड़ के नीचे 
हांफता हांफता मुस्कुरा रहा है। 

प्रियंका गोस्वामी 

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