भूरी आंखों और लाल गालों वाला लड़का





भूरी आंखों और लाल गालों वाला वो सुंदर सा लड़का पहली बार मुझे धारा पर दिखा । बैलों को हांकते अपने पिता के पीछे चलता हुआ । चलते वक़्त वो शरीर को बाईं ओर झुका लेता था जिससे उसकी चाल में उचकन थी । एक पैर छोटा था इसलिए उसका उचल कर चलना लाज़मी भी था । लेकिन मेरा ध्यान कभी उसकी भूरी आंखों और लाल गालों से हटा ही नहीं । दूसरी बार मैंने उसे अपने भाइयों के साथ भागते हुए देखा । भाई भागते थे और वो सबसे पीछे अपनी दुनिया में उड़ता था । एक पैर हमेशा हवा को धकेलता हुआ और दूसरा पैर ज़मीन को घसीटता हुआ। जब भी गर्मियों में मैं गांव आती वो अपने दोस्तों के साथ मिलकर मेरा मज़ाक उड़ाता । मेरे छोटे बाल और गढ़वाली ना समझ पाना मज़ाक का विषय हमेशा से रहा । साल बढ़ते रहे और वो सुंदर सा लड़का अब मज़ाक नहीं उड़ाता बल्कि जब भी मैं आती तो  मिलने पर दीदी प्रणाम कहकर उसी रफ़्तार के साथ उड़ता । बचपन में एक मकान की छत पर बैठे हुए उसके साथ एक हादसा हुआ और छत से बाहर निकली सरिया उसके पैरों में घुस गई। इलाज हुआ नहीं और वो यूंही ज़मीन को घसीटता हुआ जंगल..नदी और पहाड़ पार करता रहा।
हर साल की तरह उस साल भी उसका पूरा परिवार केदारनाथ गया । यात्रियों को खच्चर पर ले जाना .. दूध और चाय के लिए गांव से केदारनाथ तक गाय हांकना ये सब उसके काम थे । उस रात बहुत तेज़ बारिश थी.. सुबह चारों तरफ़ से नदी अाई ...वो ज़मीन को घसीटता हुआ एक मकान की छत पर गया । सामने वाली छत पर बाकी भाई थे और उन्होंने देखा कि उस भूरी आंखों और लाल गाल वाले लड़के की छत पलट गई ।
 वो इस बार उड़ नहीं पाया। जल समाधि के बाद फिर भी लोग मिल जाते हैं .. लेकिन वो ...कभी नहीं मिला ।
 सुबह से लगातार उसकी भूरी आंखें.. लाल गाल और दीदी प्रणाम कहना याद आ रहा था । बेचैनी हुई तो सविता से बात की.. और उसने बताया आज उसका जन्मदिन है । मैं नहीं जानती कि मैं इतनी यादों को क्यों समेटे हुए हूं .. जो मुझे इतना बेचैन कर देती हैं । लेकिन फिर लगता है कि मैं जरिया हूं उन दबी यादों की कहानी कहने का ।
आशु तुझे हैप्पी बर्थडे कहना बड़ा प्लास्टिक सा लगता है । पहाड़ बर्थडे को शहरी ढकोसला कहता है । इसलिए बस इतना कहना है कि तू ज़ेहन में है । अगर पुनर्जन्म होते हैं तो तू फिर दौड़ेगा उस धारा की सूनी पगडंडियों पर ।

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