संतुलन
बात बचपन की है
जब मेरे कमरे की दीवार पर लगे स्विच को
मैं टुकुर टुकुर देखती थी।
नन्हे हाथ कभी उसे ऑफ तो कभी उसे ऑन करते ।
एक दिन मैंने उसे ऑफ और ऑन के बीच रोकने की कोशिश की।
एक लम्बी कोशिश....
जिसने बचपन को जवानी ....और जवानी को बुढ़ापे में तब्दील कर दिया।
आज भी मैं ऑफ ऑन के बीच उसे रोकने की कोशिश में हूँ।
लेकिन इस लम्बी कोशिश में
पता नहीं कब स्विच … ज़िन्दगी में बदल गया है ।
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photo credits : tauseef iqbal |
बात बचपन की है
जब मेरे कमरे की दीवार पर लगे स्विच को
मैं टुकुर टुकुर देखती थी।
नन्हे हाथ कभी उसे ऑफ तो कभी उसे ऑन करते ।
एक दिन मैंने उसे ऑफ और ऑन के बीच रोकने की कोशिश की।
एक लम्बी कोशिश....
जिसने बचपन को जवानी ....और जवानी को बुढ़ापे में तब्दील कर दिया।
आज भी मैं ऑफ ऑन के बीच उसे रोकने की कोशिश में हूँ।
लेकिन इस लम्बी कोशिश में
पता नहीं कब स्विच … ज़िन्दगी में बदल गया है ।
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