अछूत देवी




उसे घर बुलाया 
बिठाया.... 
खुद उसके पैर धोये । 
खिलाये उसे छप्पन भोग 
और शीश झुका के नमन किया ।     

लेकिन कुछ दिनों बाद 
वो घर से बाहर 
एक पत्थर सरीखे बिस्तर पर 
धूप - बारिश में तप रही होगी । 
अलग सी थाल छप्पन नहीं 
लेकिन छुआ छूत के भोग से सजी होगी ।  

अजीब बात है 
महीने का एक बायोलॉजिकल प्रोसेस 
एक महावारी... 
देवी को अछूत बना देता  है ।

प्रियंका गोस्वामी 

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