अछूत देवी

उसे घर बुलाया बिठाया.... खुद उसके पैर धोये । खिलाये उसे छप्पन भोग और शीश झुका के नमन किया । लेकिन कुछ दिनों बाद वो घर से बाहर एक पत्थर सरीखे बिस्तर पर धूप - बारिश में तप रही होगी । अलग सी थाल छप्पन नहीं लेकिन छुआ छूत के भोग से सजी होगी । अजीब बात है महीने का एक बायोलॉजिकल प्रोसेस एक महावारी... देवी को अछूत बना देता है । प्रियंका गोस्वामी