मैं जान चुकी




















मैं सावित्री की तरह
यमराज के पीछे नहीं चल पाऊँगी।
ना सीता की तरह पार कर पाउंगी
अग्नि कुंड।

मैं पांचाली की तरह
विलाप भी नहीं कर पाउंगी।
और ना प्रतीक्षा कर पाउंगी
अहिल्या की तरह।

मैं मीरा की तरह
प्रेम भक्ति में भी नहीं शामिल।
और ना राधा की तरह वियोग में।

मैं तो बस तुम्हे छू के
नदी बन जाउंगी,
और तुम्हारे जाने के बाद
नहीं लगाउंगी आस
तुम्हारे पलट के देखने की।

नहीं गाउंगी वियोग के गीत
और नहीं नापूंगी प्रतीक्षा परीक्षा के
अग्नि कुंड।

मैं जान चुकी
ना तुम मेरे विधाता
और ना मैं तुम्हारा भाग्य
हम दोनों ही वक़्त  हैं।
और खुद कहो
गुज़रा हुआ  वक़्त पलट के आया है कभी ?

- प्रियंका 

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