धारा वाला भूत



एक गांव था.. नाम क्या था पता नहीं। तो चलिए इसे एक नाम दे देते हैं , अब कहानी में बिना नाम के काम नहीं चलता।  लेकिन ऐसा किस महा पुरुष ने कहा ?  मुझे तो याद नहीं .. तो चलिए गाँव का नाम रहने ही देते हैं।
 तो एक गांव था दूर पहाड़ों के बीच बांज  और बुरांश के जंगलों से घिरा हुआ। लोग कहते थे कि स्वर्ग की यात्रा करते पांडव इस गांव से होकर गुज़रे थे, यहाँ भीम ने अपने हाथों से एक चूल्हा बनाया था।  खैर कहानी ना पांडवों की है और ना उस चूल्हे की। तो चलिए वापस  पहाड़ों के बीच बांज  और बुरांश से घिरे इस गांव में वापस आ जाते हैं, जहाँ कंचे खेलते कुछ लड़के धारा के भूत की बात कर  रहें हैं।  अरे !!! मैंने तो धारा के बारे में आपको बताया ही नहीं।  दरअसल, इस बेनाम गांव से कुछ एक - आध किलोमीटर की दूरी पर धारा थी, बड़े बूढ़ों की माने तो हज़ारों साल पहले इस धारा से अमृत बहता था, जहाँ  देवता अमृत  पीने आते थे।  अब भी गहरी काली रात में पहाड़ों की देवी इस धारा पर अपना कलश भरने आती है और फिर धारा वाले गांव (जिसका नाम रहने ही दीजिये) के मंदिर में शिव लिंग पर जल चढ़ा कर वापस पहाड़ों पर चली जाती है।  "तो क्या पहाड़ों की देवी आज रात भी पानी भरने आएँगी ?" 
"अरे नहीं नहीं... अब रात में इस धारा में  एक भूत का वास होने लगा है, जी हां वही भूत जिसके बारे में अनजाने गांव  के कंचे खेलते बच्चे बात कर रहें हैं ।

Photo Credit : Amit Joshi


"ऐ भगतु.. चैतू क्यों नहीं आया रे"
"अरे वो छल गया..परसों उसने धारा वाले भूत को देख लिया बल,  अब उसका दादा बकरा लाने गए हैं" भगतु कंचों पर निशाना लगाते हुए बोला।
"बकरे  की शामत" इन पहाड़ वाले गांवों में ज़्यादा आती थी।  बच्चा पैदा नहीं होता था तो बकरा कटेगा, बच्चा पैदा हुआ (खासकर लड़का) तो बकरा कटेगा, तेज़ बुखार आ गया तो बकरा कटेगा , अरे देवता पुजाई तो मैं भूल ही गयी .. तब भी बकरा कटेगा।

काटे हुए गेंहू की फसल मिटटी से बने घर की दीवारों पर सजी हुई हैं। डॉक्टर वहां नहीं आ सकता क्योंकि चैतू उस जाति का बच्चा है जिनके लिए  धारा वाले गांव के लोग अलग से चाय की प्याली और थाली रखते हैं। मज़ेदार बात तो ये है कि इनका देवता भी अलग है। चैतू की माँ के 7  बच्चे हुए, जिसमे से 5 पैदा होने के कुछ ही महीनों बाद मर गए थे। वजह वही पुरानी थी  गन्दगी... ख़ैर उन मरे बच्चों का किसी ने शोक नहीं मनाया, क्योंकि उस वक़्त धान की फसल खेतों में तैयार थी। चैतू के परिवार के  खुद के केवल दो ही खेत थे लेकिन धारा वाले गांव के  खेतों में हल लगाने से लेकर गुड़ाई, मंडाई का काम चैतू के गांव वालों का ही था। ये उनकी मजदूरी थी और मजबूरी भी।  चैतू के गांव  वाले इन फसलों को छू  कर इन्हें सींचते और काटते ज़रूर थे, लेकिन ये फसल जब थाली में आ जाती थी तो धारा वाले गांव के लोग इनकी परछाई से भी दूर भागते थे।  ताज्जुब की बात ये है कि चैतू के गांव वालों ने इस तरह से कभी सोचा ही नहीं जैसा सोचते हुए मैंने ये बात लिखी है।

चैतू को तेज़ बुखार है और बकरा कटने को तैयार है। बाँझ और बुरांश के जंगलों में  मंत्र उच्चारण होता है और लीजिये बकरे की बलि का कार्यक्रम समाप्त हो गया।  पहाड़ों में रात थोड़ा जल्दी हो जाती है.. और ज़्यादा गहरी भी होती है। सुबह बर्फ से ढके जो पहाड़ हंस लग रहें होते हैं वो रात में किसी प्रेत से दिखते  हैं।  बाँज  और बुरांश के पेड़ों को जब हवाएं छूकर गुज़रती हैं तो एक ऐसी महक फ़ैल जाती है की जिन्न भी जाग जाए।  ऐसे में सोये हुए चैतू के पास एक काया आकर खड़ी हो जाती है , लम्बे घुंघराले बाल जो बंधे होकर भी बंधे नहीं थे, चैतू चड़म से उठ जाता है, ऐसा लगता है जैसे उस काया ने चैतू को अपने वश में कर दिया है , वो काया सर पर बड़ा सा पोटला उठा के चल रही है और चैतू उसके पीछे- पीछे। कुछ ही पलों में धारा आ गया उस काया ने पोटली से कुछ छोटे - छोटे कपडे निकाले और कहा -
"चैतू तू पाणी मा हाथ न डाल... तख बैठ जा.. मैं अपने आप करदु.. निथर फिर बुखार ह्वै  जालु''.
"ठीक है माँ" चैतू ने जवाब दिया।
चैतू के गांव में भीम ने चूल्हा बनाया ज़रूर होगा लेकिन वहां पांडव ज़्यादा देर नहीं रुके, बिना पानी के कोई कैसे रुक  सकता था । थोड़ी दूर में यहाँ  बसे  धारा से अमृत ज़रूर बहता  रहा  होगा लेकिन उस अमृत की छींटे चैतू के गांव वालों पर कभी नहीं पड़ी। वरना प्यासी ममता भूत बनकर.... इतनी रात गए अपने दूधमुंहे बच्चे के गंदे  कपडे ना धो रही होती। उन 5 बच्चों की मौत के बाद चैतू का भाई फिलहाल ज़िंदा है।

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