चल पड़ो ...
मंजिलों की ओर नहीं
मंजिलों से दूर.
सिर्फ अपने लिये
कहीं चल पड़ो....

चल पड़ो
और महसूस करो
हर सांस की आंधी को...
देखो सोचो और फिर
चल पड़ो....

चल पड़ो
उस हीर की तरह
इश्क के मोहल्ले में ,
भीड़ में सयानों से दूर
चल पड़ो...

चल पड़ो..
किसी साथी बिना
धधकते आसमां के नीचे
आवीरगी की बानगी तक...
चल पड़ो....

चल पड़ो..
कि मिलो खुद से
और हो जाओ मशगूल
ऐसे नहीं जैसे जीत होती है..
लेकिन ऐसे जैसे आलिंगन हो...
चल पड़ो...

चल पड़ो..
जैसे कोई नहीं देख रहा हो
चूमों हवाओं को
मिट्टी में नहाओ..
सादगी के गांव में
किसी आंचल बगान में
बस चल पड़ो.. चल पड़ो..



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