एक तार से लटकती ज़िन्दगी
बहती है बूँद बूँद..
बूँद बूँद ही तो जीना है ।
फिर भी धड़कन से तेज़ भागते हैं
कभी घर से
कभी रिश्तों से
बूँद बूँद खरचते हैं खुद को
हर घडी, हर रोज़ ।
थोडा सा रुको
कहीं किसी दिन
थकी हुई हथेली में
कोई हाथ नहीं..
बल्कि एक तार से लटकती
ज़िन्दगी ना रह जाए
जो बहती है बूँद बूँद....
और बताती जाए
बूँद बूँद ही तो जीना था |
- प्रियंका

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