देखो मेरे गांव के जंगल जल रहें हैं

और जल रहें है उस जंगल के देवता भी।
देखो वो धू धू कर उठती लपटों को
जैसे उस जंगल की आछरियों के खुले बाल आसमान में
उड़ रहें हो..
देखो मेरे गांव के जंगल जल रहें हैं
और जल रही है मेरे बचपन की फ्योंली की कहानी भी।
देखो वो बिखरे हुए बुरांश के लाल जले फूल
जैसे जंगल का रक्त बहता हुआ
सूख गया हो...
और जल रही है मेरे बचपन की फ्योंली की कहानी भी।
देखो वो बिखरे हुए बुरांश के लाल जले फूल
जैसे जंगल का रक्त बहता हुआ
सूख गया हो...
देखो मेरे गांव के जंगल जल रहें हैं
और जल रहें हैं माओं के फुर्सत के पल।
देखो वो काफल के जले पेड़
जैसे समाधी में बैठे दधीचि की हड्डियां
फैली पड़ी हो...
और जल रहें हैं माओं के फुर्सत के पल।
देखो वो काफल के जले पेड़
जैसे समाधी में बैठे दधीचि की हड्डियां
फैली पड़ी हो...
देखो मेरे गावं के जंगल जल रहे हैं
और जल रहीं हैं हज़ारों आत्माएं भी ।
देखो भूमि पर जले गुलदार को
जैसे किसी माँ ने अपने मरे बच्चे को
खुद में समेटा हो...
और जल रहीं हैं हज़ारों आत्माएं भी ।
देखो भूमि पर जले गुलदार को
जैसे किसी माँ ने अपने मरे बच्चे को
खुद में समेटा हो...
देखो मेरे गांव के जंगल जल रहे हैं
और अब वो जलाएंगे तुम्हे और मुझे भी।
फैलेंगे वो कंक्रीट के जंगलों तक
धू धू करके जलोगे तुम और मैं।
और अब वो जलाएंगे तुम्हे और मुझे भी।
फैलेंगे वो कंक्रीट के जंगलों तक
धू धू करके जलोगे तुम और मैं।
आखिर एक माँ कब तक अपने बच्चों का क़त्ल
माफ़ करती रहेगी।
माफ़ करती रहेगी।
- प्रियंका
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