घर नहीं देखा

घर नहीं देखा
कुछ देखा तो वो था कल रात का स्वप्न
माँ बाल बना रही थी
और नन्ही मैं उनके बगल में बैठी
उन्हें निहारती
सोचती हुई कि कब आउंगी इस जगह
कब पहनूंगी ये चूड़ियाँ और छन छन करते
पूरे घर में दूंगी अपने होने का अहसास।
अचानक पैर में चुभ जाती है
माँ की कुछ टूटी चूड़ियाँ
और पापा भाग कर गोद में उठा लेते हैं मुझे।
पापा.... गालों में उस भंवर के साथ
वर्दी के खूबसूरत सितारों में सिमटे,
कितने जवान लगते हैं।
अब तो ज़िन्दगी ने वक़्त की
कुछ झुर्रियां दे दी हैं।
और मुझे यादों का सावन।
चलो सावन जल्दी जाना,
बहुत दिन हो गए हैं ना...
घर नहीं देखा।
बहुत दिन हो गए हैं ना...
घर नहीं देखा।
प्रियंका
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