कई बार देखा मैंने

कई बार देखा मैंने
उस धूल  से सने जिस्म को
जो उस फटी कमीज़ से ... झांक-झाँक
एक कहानी कहने को बेताब है
उस रात भी यही जिस्म
धरती पर बिछे उस अखबार पर पसरा था ।
अख़बार कह रहा था ...
आंकड़ों में दर्ज कुछ लोगों की कहानी
और पास ही पड़ी थी एक नन्ही जान ।
कई बार देखा मैंने उस नन्ही जान को
जो उस जिस्म की सूखी  छाती में ढूँढता रहता है
दूध की धारा ....
लेकिन धारा तो शिव के जूडे से निकल कर
रोमांच की नदियों में सिमट गयी ।
इन्ही नदियों में कभी कभी
आंकड़ों में दर्ज कुछ लोगों की कहानी
लाश बनकर बहती है ...
लेकिन जिन्हें हम कई बार देखते हैं
क्या वो कहीं दर्ज हैं ?
न जाने कितनी नन्ही जान यूँ ही नाजायज़ रहेंगी
और धूल  से पसरा जिस्म,
 फटी कमीज से झांककर कहेगा एक कहानी
कि अब छाती के साथ योनि भी सूख चुकी है ।

प्रियंका गोस्वामी

Comments

  1. प्रियंका जी , आप सच मे रुलाएगी हमे,, मे आपको महंगे वाला चाहने लगा हु , हा हा ,
    प्यार करना बहुत सहज होता है जो आपके ब्लॉग से मुझे हो गया है

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  2. thanx alot abhinav ji :)
    chaliye apke pyaar ke liye hum yun hi likhte rahenge

    ReplyDelete

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