मंगल गीत 

इस रोशनी के परे

वो अँधेरा घना

दूर जलते उस घर के चूल्हे पर रुक जाता है ।

जहाँ कुछ मिटटी की दीवारों के बीच

दो बूढी ऑंखें

ठण्ड में हाथ तापती हैं ।

पसरे सन्नाटे को चीरने

कभी कुछ मंगल गीत गाते - गाते

वो याद करती है खुद की विदाई ।

वो बाली उमर


जब गुडिया से खेलता उसका बचपन,

खुद खिलौना बन गया ।

और फिर एकाएक बरस जाता है पानी

उस गुड्डे की याद में

जो दो नन्हे फूल देकर,

चकाचौंध में गुम हुआ ।

आज वो फूल पेड़ हो गए हैं ,

पर ये गुडिया

अब भी मंगल गीत गाती है ।

सबकी विदाई के मंगल गीत ,

उस जलते चूल्हे में

अँधेरा अब भी बाकी है ।




priyanka goswami

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