
आज हिचकियाँ आई
याद आ जाता है वो पल
जब मेरे चेहरे पर लगे भात को
आप बार बार पोछ मुझे खाना सिखाते थे.
ना जाने क्यों
अगर कभी झूलों पर बैठूं
तो अनायास पीछे देखती हूँ
कहीं आप पीछे खड़े झूला धकेल रहे हो...
ना जाने क्यों.....
आप की कांख पर लेटे
वो नन्ही कविता फिर सुनाने का दिल करता है
जिसे आप बार बार सुन धीमे मुस्काते थे
ना जाने क्यों....
फिर वो बचपन याद आता है
जिसे आपकी वर्दी ने धूमिल कर दिया.
और मै उसपर लगे सितारे देखती रही.
ना जाने क्यों...
आज हिचकियाँ आई
और फिर एहसास हुआ की
शायद मेरे बाबुल मुझे याद कर रहे हैं..
priyanka goswami
फिर वो बचपन याद आता है
जिसे आपकी वर्दी ने धूमिल कर दिया.
और मै उसपर लगे सितारे देखती रही.
ना जाने क्यों...
आज हिचकियाँ आई
और फिर एहसास हुआ की
शायद मेरे बाबुल मुझे याद कर रहे हैं..
priyanka goswami
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