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Showing posts from 2012
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मंगल गीत  इस रोशनी के परे वो अँधेरा घना दूर जलते उस घर के चूल्हे पर रुक जाता है । जहाँ कुछ मिटटी की दीवारों के बीच दो बूढी ऑंखें ठण्ड में हाथ तापती हैं । पसरे सन्नाटे को चीरने कभी कुछ मंगल गीत गाते - गाते वो याद करती है खुद की विदाई । वो बाली उमर जब गुडिया से खेलता उसका बचपन, खुद खिलौना बन गया । और फिर एकाएक बरस जाता है पानी उस गुड्डे की याद में जो दो नन्हे फूल देकर, चकाचौंध में गुम हुआ । आज वो फूल पेड़ हो गए हैं , पर ये गुडिया अब भी मंगल गीत गाती है । सबकी विदाई के मंगल गीत , उस जलते चूल्हे में अँधेरा अब भी बाकी है । priyanka goswami
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तू गन्दी हो चुकी है "भाई साहब अगर आप नहीं होते तो मैं इस नयी जगह में ऑफिस और घर मेनेज नहीं कर पाती । थेंक यू सो मच !" अरे बहनजी एक तरफ आप भाई कहती हैं और फिर थेंक यूं भी ? थेंक्स तो मुझे कहना चाहिए, घर पर बैठे बैठे पूरे दिन बोर होता हूँ लेकिन जबसे आप गुडिया को यहाँ छोड़ने लगी हैं तबसे पूरे घर में रौनक रहती है । फिर दोपहर में हमारी मैडम भी आ ही जाती हैं । तो तकलीफ कैसी ?" " ठीक है भाई साहेब इसका ख्याल रखियेगा, जबसे इसके स्कूल की छुट्टियाँ पड़ी है गुमसुम सी रहने लगी है । " मिसेज शर्मा गुडिया को उसकी नर्सरी की किताबें थमाते हुए ऑफिस के लिए निकल गयी । जाते ही पडोसी अंकल ने गुडिया से कहा " ऐ लड़की, अपना मुह इसी तरह बंद रखना किसी से अगर कुछ कहा तो तेरे  मम्मी पापा तुझे छोड़ कर चले जायेंगे क्यूंकि तू गन्दी हो चुकी है । चल अन्दर चल । गुडिया की आँखों से डर  पानी की शक्ल में फिर बरस पड़ा । वो आज फिर एक मूक दर्द से गुजरने वाली थी ।

अधूरा रास्ता

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खूबसूरत आज हमने  मकान खड़े हैं कर दिए... पर घर कैसे बनाएं इसका   जवाब नहीं मिलता..... बच्चे सो जाते हैं अक्सर  ख्वाबों के तकिये पे, दादी की कहानी सुनने का  आराम नहीं मिलता....... चल पड़ते हैं इम्तिहानों में आंखें सुजाये हुए  पर दही चीनी खिलाने का पैगाम नहीं मिलता....... मिल जाती है कुछ नौकरियां  उन बड़े ठिकानों पर. लेकिन वहां का बंधुआ  आज़ाद नहीं मिलता.... बन जाती हैं कुछ डोलियाँ आज भी दुकानों में पर उन्हें कान्धा देने वाला कहार नहीं मिलता..... वो आज ठोकर मारते हैं  अपने ही गाँव को और आखिरी पल उनको ही  शमशान नहीं मिलता .... आज कलम ये चल पड़ी   एक नए से पन्ने पे लेकिन यहाँ किसी किताब को  इनाम  नाम नहीं मिलता ........ priyanka goswami 
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आज हिचकियाँ आई ना जाने क्यों.. याद आ जाता है वो पल जब मेरे चेहरे पर लगे भात को आप बार बार पोछ मुझे खाना सिखाते थे. ना जाने क्यों अगर कभी झूलों पर बैठूं तो अनायास पीछे देखती हूँ कहीं आप पीछे खड़े झूला धकेल रहे हो... ना जाने क्यों..... आप की कांख पर लेटे वो नन्ही कविता फिर सुनाने का दिल करता है जिसे आप बार बार सुन धीमे मुस्काते थे ना जाने क्यों.... फिर वो बचपन याद आता है जिसे आपकी वर्दी ने धूमिल कर दिया. और मै उसपर लगे सितारे देखती रही. ना जाने क्यों... आज हिचकियाँ आई और फिर एहसास हुआ की शायद मेरे बाबुल मुझे याद कर रहे हैं.. priyanka goswami