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Showing posts from June, 2018
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Photo : Pradeep Singh Mawari एक दिन पहाड़ समाधि से उठ बैठेंगे और नदियां मुड़ेंगी  सागर के सफीने को छू कर । उस दिन झीनी सी चांदनी में होगी गर्माहट और आसमान में होगा अक्स ज़मीन का। उस दिन मैं फिर खिलूँगी तुम्हारी बाहों में और गाउंगी कुछ गीत पहाड़ी। हाँ , वो दिन जब तुम "मैं" और "मैं" तुम हो जायेंगे । और  नहीं पड़ेगी ज़रूरत "हम" की राजनीति की ।  - प्रियंका

कल अगर मैं, ग़ुम हो जाऊं

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कल अगर मैं  ग़ुम हो जाऊं , तो मुझे ढूंढना  अपनी शर्ट के बटन में  जिन्हें लगाते ही एहसास होगा तुम्हें मेरे आलिंगन का।   अगर ढूंढने आओ  तो ढूंढना  उन पहाड़ों के मुहाने पर  जहां अब भी कैद हैं  तुम्हारे मीठे गीत।   क्या पता उन्हें सुनती हुई  मिल जाऊं मैं तुम्हें  खिली हुई फ्योली की तरह।   कल अगर मैं ग़ुम हो जाऊं ,  तो मत पुकारना मेरा नाम  किसी और की दी हुई चीज़  नहीं संभाल पाउंगी  अपने ग़ुम होने के बाद।  - प्रियंका 

मैं जान चुकी

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मैं सावित्री की तरह यमराज के पीछे नहीं चल पाऊँगी। ना सीता की तरह पार कर पाउंगी अग्नि कुंड। मैं पांचाली की तरह विलाप भी नहीं कर पाउंगी। और ना प्रतीक्षा कर पाउंगी अहिल्या की तरह। मैं मीरा की तरह प्रेम भक्ति में भी नहीं शामिल। और ना राधा की तरह वियोग में। मैं तो बस तुम्हे छू के नदी बन जाउंगी, और तुम्हारे जाने के बाद नहीं लगाउंगी आस तुम्हारे पलट के देखने की। नहीं गाउंगी वियोग के गीत और नहीं नापूंगी प्रतीक्षा परीक्षा के अग्नि कुंड। मैं जान चुकी ना तुम मेरे विधाता और ना मैं तुम्हारा भाग्य हम दोनों ही वक़्त  हैं। और खुद कहो गुज़रा हुआ  वक़्त पलट के आया है कभी ? - प्रियंका