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Showing posts from May, 2018

लाल गालों वाली लड़कियां

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पहाड़ों की  लाल गालों वाली लड़कियों ,  जब तुम काँधे पर बस्ता टांग  गुज़रती हो सीढ़ीनुमा खेतों के बीचो- बीच  तब तुम्हारे पीछे चल रही होती है माँ की फटकार ,  जो तुम्हें याद दिलाती है कि आज खेतों में गुड़ाई का दिन है।   वहीँ तुम्हारे हाथों में रह जाती है ताज़ा कटे घास की महक   और दो चोटियों में बंधे होते है बुरांश सरीखे फूल। टंगे बस्ते की बदौलत लाल गाल वाली लड़कियां नहर, गदेरों और जंगल से गुज़रते हुए खिलखिला के चलती हैं, और रास्ते में हर पत्थर को छू कर सोये देवता जगाती है। लाल गाल वाली लड़कियां  काँधे पर बस्ता टाँगे चुपके से देखती हैं  उस छवि को भी जिसे देखकर उनके लाल गाल और लाल हो जाते हैं।   जिससे चाह कर भी वो कभी बात नहीं करती लेकिन उसके  नाम के पहले अक्षर को  अपनी हथेलियों  पर सजाती और मिटाती हैं  , क्योंकि उन्हें पता है कि  उनकी डोली उस सामने खड़े पहाड़  को लांघ कर जाएगी। और फिर वो किसी और सीढ़ीनुमा खेतों...

धारा वाला भूत

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एक गांव था.. नाम क्या था पता नहीं। तो चलिए इसे एक नाम दे देते हैं , अब कहानी में बिना नाम के काम नहीं चलता।  लेकिन ऐसा किस महा पुरुष ने कहा ?  मुझे तो याद नहीं .. तो चलिए गाँव का नाम रहने ही देते हैं।  तो एक गांव था दूर पहाड़ों के बीच बांज  और बुरांश के जंगलों से घिरा हुआ। लोग कहते थे कि स्वर्ग की यात्रा करते पांडव इस गांव से होकर गुज़रे थे, यहाँ भीम ने अपने हाथों से एक चूल्हा बनाया था।  खैर कहानी ना पांडवों की है और ना उस चूल्हे की। तो चलिए वापस  पहाड़ों के बीच बांज  और बुरांश से घिरे इस गांव में वापस आ जाते हैं, जहाँ कंचे खेलते कुछ लड़के धारा के भूत की बात कर  रहें हैं।  अरे !!! मैंने तो धारा के बारे में आपको बताया ही नहीं।  दरअसल, इस बेनाम गांव से कुछ एक - आध किलोमीटर की दूरी पर धारा थी, बड़े बूढ़ों की माने तो हज़ारों साल पहले इस धारा से अमृत बहता था, जहाँ  देवता अमृत  पीने आते थे।  अब भी गहरी काली रात में पहाड़ों की देवी इस धारा पर अपना कलश भरने आती है और फिर धारा वाले गांव (जिसका नाम रहने ही दीजिये...