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मेरे बाद तुम्हारी अगली प्रेमिकाओं को नहीं सहेजनी पड़ेंगी तुम्हारी कतरन, जिसे जोड़कर मैंने तुम्हारा आज बनाया । उन्हें नहीं मालूम चलेगा कि तुम्हारा बिखरना कितना सुंदर था । नहीं महसूस कर पाएंगी वो कि आंचल में तुम्हारा कतरा बटोरकर इश्क़ की पतंग बनाना कैसा होता है । वो नहीं देख पाएंगी कि जिन सपनों को तुम जी रहे हो उसकी शुरुआती नींद कितने सुकून की थी । उन्हें नहीं मिलेगा सूखी रोटी, छोटी कटोरी और पहाड़ी चकोरी का साथ। मेरे बाद तुम्हारी अगली  प्रेमिकाएं नहीं छू पाएंगी वो जगहें जहां मैंने बीज बोए हैं । क्योंकि तुम्हारी अगली प्रेमिकाएं देखेंगी पेड़ और झूलेंगी झूला हर सावन में । - © प्रियंका

मेरे जाने के बाद भी

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तुम्हारी मुस्कान के कोनों पर मैंने इश्क़ रखा है । इसे करीने से सजाना मेरे जाने के बाद भी । धीमी आंच पर सुकून की रात रखी है । तुम सपने पिरोना मेरे जाने के बाद भी । मेरे जाने के बाद अपनी शर्ट की सिलवट अपनी नींद की करवट और आंगन का बरगद भी बचाए रखना । बचाए रखना, बिछौने का तकिया तड़के का जखिया और आईने में चिपकी बिंदिया भी । देखो, मेरे जाने के बाद मत जाने देना मुझे मेरे जाने के बाद भी । - © प्रियंका
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अमृता एक ऐसा नाम जो अपने साथ बहुत एहसास समेटे है।  उन्हीं एहसासों को समेटने की कोशिश की है मैंने उनके पत्रों से।  

तुम और मैं

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तुम साइंस के इक्वेशन मैं हिंदी की मात्रा । तुम ब्रह्माण्ड के सिद्धांत मैं सिंधु की धारा । तुम द्वितीय विश्व युद्ध मैं एन फ्रैंक की डायरी । तुम संविधान का आलेख मैं चित्रगुप्त की कचहरी । तुम गणित की गिनती मैं बही का खाता । तुम गरम दल की पगड़ी मैं चरखे का धागा .. तुम लंबी उम्र का आशीष मैं गौतम का शाप। तुम गंगा का पुण्य मैं कृष्ण का पाप । लेकिन मुझे पता है कहां मिलेगा किनारा। होगा कॉपी के आख़िरी पन्ने पर नाम हमारा । - प्रियंका

भूरी आंखों और लाल गालों वाला लड़का

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भूरी आंखों और लाल गालों वाला वो सुंदर सा लड़का पहली बार मुझे धारा पर दिखा । बैलों को हांकते अपने पिता के पीछे चलता हुआ । चलते वक़्त वो शरीर को बाईं ओर झुका लेता था जिससे उसकी चाल में उचकन थी । एक पैर छोटा था इसलिए उसका उचल कर चलना लाज़मी भी था । लेकिन मेरा ध्यान कभी उसकी भूरी आंखों और लाल गालों से हटा ही नहीं । दूसरी बार मैंने उसे अपने भाइयों के साथ भागते हुए देखा । भाई भागते थे और वो सबसे पीछे अपनी दुनिया में उड़ता था । एक पैर हमेशा हवा को धकेलता हुआ और दूसरा पैर ज़मीन को घसीटता हुआ। जब भी गर्मियों में मैं गांव आती वो अपने दोस्तों के साथ मिलकर मेरा मज़ाक उड़ाता । मेरे छोटे बाल और गढ़वाली ना समझ पाना मज़ाक का विषय हमेशा से रहा । साल बढ़ते रहे और वो सुंदर सा लड़का अब मज़ाक नहीं उड़ाता बल्कि जब भी मैं आती तो  मिलने पर दीदी प्रणाम कहकर उसी रफ़्तार के साथ उड़ता । बचपन में एक मकान की छत पर बैठे हुए उसके साथ एक हादसा हुआ और छत से बाहर निकली सरिया उसके पैरों में घुस गई। इलाज हुआ नहीं और वो यूंही ज़मीन को घसीटता हुआ जंगल..नदी और पहाड़ पार करता रहा। हर साल की तरह उस साल भी उसका पूरा...
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शहर की गंध पीछे छोड़े वो उस ऊंचे पहाड़ के ताल तक पहुंच ही गया । इस वक़्त वो पांडवों के साथ स्वर्ग की यात्रा करती द्रौपदी की तरह थक चुका था । इसलिए धड़ाम से दोनों हाथों को हवा में फैलाए हरी घास पर लेट जाता है..बिना परवाह किए कि वो वहीं बैठी है । वो मुस्कुराती है और तालाब को देखते हुए कहती है। "तुम्हें पता है ये तालाब शिव के नाग ने बनाया ।" लड़का बंद आंखों से बुदबुदाते हुए कहता है.." देवी.. देवता या भूतों की कहानी के अलावा कोई और कहानी है तुम लोगों के पास..कोई भी कहानी जो सुकून दे जाए" । शहर की गंध अब भी लड़के के साथ कहीं बाकी थी । लड़की गंध भांप लेती है और अपने बैग की डायरी से एक पीला फूल निकाल कर कहती है ।  "ये लो कहानी.. प्रेम कहानी है । इसे जानोगे तो प्रेम जान जाओगे.. और प्रेम जान जाओगे तो सुकून मिलेगा" लड़का आंखें खोलता है.. वो वहां नहीं थी । लेकिन बगल  में रखा था पीला फूल। तालाब की सतह पर शिव के चांद की छाया थी । उसने खुद को मिथ्या और यथार्थ के बीच का नाग पाया । #ek_hissa - प्रियंका

पहाड़ों में

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पहाड़ों के सबसे पुराने मकान मंदिर हो जाते हैं । और इंसान हो जाते हैं देवता । कुछ घास प्रसाद बन जाते हैं और धारा बन जाती है गंगा । पहाड़ों में फटी ऐड़ियों की दरारों से कहानी झांकती है । और डोली गाती है कविता । पहाड़ों में... पहाड़ ... कटकर भी पहाड़ रहते हैं ।  प्रियंका