आँखों में बादल लिये इंतज़ार करती हैं मेरे आने पर बोसा बहार करती हैं प्यारी सी गुड़िया वो ठुम - ठुम चलती हैं, दूधते हुए वो पगली मल्हार गाती है। इकलौती अपनी चिमनी मे दो चाँद बनाती है चूल्हे की खुशबू से सनकर मुझको खिलाती है। टेढ़ी मेढ़ी झुर्रियों से यादें हज़ार चुनती हैं यादों के किस्सों का थपकाव करती हैं। छोटी सी पुड़िया वो मेरी पहाड़ों में खेली है हलकी सी मेरी छींक पर नज़र उड़ेली है। जुग जुग के आशीष संभाले मेरा इंतज़ार करती हैं मेरी दादी नन्ही सी बोसा बहार करती हैं। प्रियंका गोस्वामी
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कई बार देखा मैंने उस धूल से सने जिस्म को photo credits : tauseef iqbal जो उस फटी कमीज़ से ... झांक-झाँक एक कहानी कहने को बेताब है उस रात भी यही जिस्म धरती पर बिछे उस अखबार पर पसरा था । अख़बार कह रहा था ... आंकड़ों में दर्ज कुछ लोगों की कहानी और पास ही पड़ी थी एक नन्ही जान । कई बार देखा मैंने उस नन्ही जान को जो उस जिस्म की सूखी छाती में ढूँढता रहता है दूध की धारा .... लेकिन धारा तो शिव के जूडे से निकल कर रोमांच की नदियों में सिमट गयी । इन्ही नदियों में कभी कभी आंकड़ों में दर्ज कुछ लोगों की कहानी लाश बनकर बहती है ... लेकिन जिन्हें हम कई बार देखते हैं क्या वो कहीं दर्ज हैं ? न जाने कितनी नन्ही जान यूँ ही नाजायज़ रहेंगी और धूल से पसरा जिस्म, फटी कमीज से झांककर कहेगा एक कहानी कि अब छाती के साथ योनि भी सूख चुकी है । प्रियंका गोस्वामी