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मंगल गीत  इस रोशनी के परे वो अँधेरा घना दूर जलते उस घर के चूल्हे पर रुक जाता है । जहाँ कुछ मिटटी की दीवारों के बीच दो बूढी ऑंखें ठण्ड में हाथ तापती हैं । पसरे सन्नाटे को चीरने कभी कुछ मंगल गीत गाते - गाते वो याद करती है खुद की विदाई । वो बाली उमर जब गुडिया से खेलता उसका बचपन, खुद खिलौना बन गया । और फिर एकाएक बरस जाता है पानी उस गुड्डे की याद में जो दो नन्हे फूल देकर, चकाचौंध में गुम हुआ । आज वो फूल पेड़ हो गए हैं , पर ये गुडिया अब भी मंगल गीत गाती है । सबकी विदाई के मंगल गीत , उस जलते चूल्हे में अँधेरा अब भी बाकी है । priyanka goswami