वक़्त

तुम्हें भूला नहीं जा सकता तुम्हारे पास मेरा एक लम्बा वक़्त छूटा है। उसी वक़्त का एक टुकड़ा मैं जाते वक़्त अपनी कोख में छुपा ले आई थी आजकल वो मेरी तकिए के नीचे छुपा बैठा है । कभी कभी रात में वो चुपके से मेरे बाल सहलाता है और सर के बीचों बीच मांग खींच देता है। लेकिन मांग सूनी रहती है। हमारी सूनी कहानी की तरह। छुपा छुपी का खेल रात भर यूँही चलता है, आँख खुलती है सपना टूटता है चाँद .. एक बिजली के तार पे लटका है। और तकिए के नीचे वक़्त का टुकड़ा एक दम तुम्हारी तरह ख़ामोशी से सो रहा है।