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Showing posts from September, 2011

अपाहिज सोच

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उसे बहुत देर बाद उस भरी बस में सीट मिली थी.... एक लड़की  उस सीट में बैठने ही जा रही थी की उसने वो सीट झट से लपक ली. वो लड़की टेढ़ी नज़रों से ज़ेबा को देख रही थी.. और ज़ेबा तिरछी नज़रों से अपने बगल में बैठे एक आदमी को. उसने खड़ी लड़की को LADIES सीट से उस आदमी को उठाने के लिए इशारा किया पर बदले में ज़ेबा  को उस लड़की का बना हुआ सा एक मुह मिला...."IDIOTS....क्या इन्हें पता नहीं है की ये LADIES सीट है पर फिर भी आकर बैठ जायेंगे.... ताकि लड़कियां इन्हें सीट से उठाने के बहाने ही बात कर सके, क्यूंकि ऐसे  तो कोई लड़की इन्हें घास डालेगी नहीं." अचानक वो आदमी उठने को हुआ और ज़ेबा के पैर पर कुछ चुभा उसने गुस्से से नज़र फिराई तो देखा की उस आदमी की बैसाखी गलती से ज़ेबा के पैर पर लग गयी थी.   और ज़ेबा की सोच अपाहिज सी हो गयी. 

हिसाब चुकता करके आती हूँ

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"माँ देखो इसमें हाथी बना हुआ है, और इस वाली में कहानियां है, और ये वाली तो अंग्रेजी में है... अब तो मैं भी अंग्रेजी सीख जाऊंगा..तू बहुत अच्छी है.. अब मई भी स्कूल जा पाउँगा." कहते ही मुन्ना अपनी माँ के गले से लग जाता है... "मुन्ना मेरे बच्चे... खूब मन लगा कर पढाई करना"..कहते ही रामदुलारी की आँखों में आंसू आ जाते है. "चल अब परे हट.. मुझे बाहर जाना है" "कहाँ जा रही हो माँ??"  "सेठ जी के पास बेटा... स्कूल की फीस और किताबें उन्ही के पैसों से आई हैं... मैं हिसाब चुकता करके आती हूँ.."